हमें फर्द और कौम
में फ़र्क़ करना बहुत ज़रूरी है। क़ुरान और हदीस की रौशनी में आपको यह फ़र्क़ बताता हु।
आख़िरत में हिसाब फर्द
से होंगे , हर किसी को अपना हिसाब
देना है, अल्लाह के आगे हर
कोई अकेला आएंगे , कोई किसी का हिसाब
नहीं देंगे।
क़स्सास /बदला शरीअत
में हमेशा फर्द से किया है कौम से नहीं। जो आयात करीमा मैंने लिखी है आखिर में यह है
, अगर तुम उसे माफ़ कर दो तो
वह तुम्हारा इंसानी भाई है।
और हम ने तौरेत में
यहूदियों पर यह हुक्म फर्ज़ कर दिया था कि जान के बदले जान और आँख के बदले आँख और नाक
के बदले नाक और कान के बदले कान और दाँत के बदले दाँत और जख़्म के बदले (वैसा ही) बराबर
का बदला (जख़्म) है फिर जो (मज़लूम ज़ालिम की) ख़ता माफ़ कर दे तो ये उसके गुनाहों
का कफ़्फ़ारा हो जाएगा और जो शख़्स ख़ुदा की नाजि़ल की हुयी (किताब) के मुवाफि़क़ हुक्म
न दे तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं (क़ुरान ५;४५ )
इस्लाम में अच्छाई
आम कही है , और बुराई,
खराबी, हराम का दायरा तय कर दिया गया है।
अगर किसी फर्द ने
गुनाह किया है तो उसका बदला उसी तक है, उस कौम को सजा देना यह इस्लाम का तरीका नहीं है, नहीं तारीख से हमें इसकी मिसाल मिलिटी है। बस्तिया
जलाना , औरतो की अज़मत लूटना,
यह हमारा किरदार कभी नहीं
रहा, हमारे मौक़ूफ़ पर जम
जाना मगर ज़ुल्म नहीं करना यह इस्लाम का शाएर है।
ऐ ईमानदारों ख़ुदा
(की ख़ुशनूदी) के लिए इन्साफ़ के साथ गवाही देने के लिए तैयार रहो और तुम्हें किसी
क़बीले की अदावत इस जुर्म में न फॅसवा दे कि तुम नाइन्साफी करने लगो (ख़बरदार बल्कि)
तुम (हर हाल में) इन्साफ़ करो यही परहेज़गारी से बहुत क़रीब है और ख़ुदा से डरो क्योंकि
जो कुछ तुम करते हो (अच्छा या बुरा) ख़ुदा उसे ज़रूर जानता है (क़ुरान ५;८ )
इस्लाम का सबसे अहम्
पहलू यह है, इस्लाम ने इंसाफ,
मोहब्बत, मसावात, को मुकद्दम रखा, अफ़ज़ल रखा।
इस्लाम में जुल्म, नाइंसाफी,
नफरत , तबक़ाति निज़ाम के लिए कोई जगह नहीं। हमारे मौक़फ़ पर जम जाना, उसपे डटे रहना और हमारे मौक़फ़ के लिए सब कुछ क़ुर्बान
करना इस्लाम कहलाता है।
मगर हमारे मौक़फ़ पर
डट जाने का मतलब यह नहीं है हम मयार से गिर जाए।
बदजुबानी का जवाब
बदजुबानी नहीं है , जुल्म का जवाब इंसाफ
है। नफरत का जवाब मोहब्बत है। यह हमारे प्यारे
रसूल सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम की सुन्नत है।
अल्लाह रसूल सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम का ताइफ़ का सफर और
उसके बाद जो जुल्म किया गया , जिसके ताल्लुक से
खुद प्यारे रसूल फरमाते है वह ज़िन्दगी का सबसे ज्यादा आजमाइश का दिन था। अम्मा आइशा रजि अल्लाह अन्हा फरमाती है मैंने प्यारे
रसूल सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम से पूछा क्या जंग ओहद से मुश्किल भी कोई दिन आपने देखा
, प्यारे रसूल फरमाते है है,
ताइफ़ का सफर वह दिन था। (
अबू दावूद , तिरमिधि ) दोनों जगह
यह हदीथ मौजूद है। यह वह सफर था जब दोनों दुनियावी
सहारे उम्मुल मोमिनीन खदीजा रजी अल्लाह और अबू तालिब वफ़ात प् चुके थे, मक्काः की सरजमीन दिन के दावत के लिए तंग हो चुकी
थी, उस हालात में यह सफर हुआ था।
जिस्म लहू लहान था
, वक़्त का रसूल गमगीन था,
हाथ उठा कर दुआ करते ,
ये अल्लाह! अकेले
आप को मैं अपनी लाचारी, अपने संसाधनों की कमी और मानव जाति के समक्ष अपनी
तुच्छता की शिकायत करता हूं। आप सबसे दयालु हैं। आप असहाय और कमजोरों के स्वामी हैं,
हे मेरे अल्लाह किसके हाथों में तुम मुझे छोड़ोगे: दूर के रिश्तेदार
के हाथों में जो मुझ बिलकुल भी सहानुभूति नहीं रखते , या मेरे मामलों पर
नियंत्रण रखने वाले दुश्मन को? लेकिन ऐ अल्लाह तू
मुझसे नाराज़ गुस्सा नहीं तो मेरे लिए
कोई गम की फ़िक्र की बात नहीं।
दुआ के बाद गैब्रिएल
अलैहिसलाम आकर अल्लाह के रसूल को सलाम करते और कहते अल्लाह ने आपकी दुआ सुन ली ,
आपके लिए पहाड़ के फ़रिश्ते
भेजे है , आज आप जो हुक्म दो
यह पूरा करेंगे।और पहाड़ के फ़रिश्ते सलाम करते , और कहते आप हुक्म करे तो हम आज पूरी बस्ती को दोनों
पहाड़ो के बिच दबा दे।
अल्लाह के रसूल जो
इंसानियत के लिए सरापा रहमत थे , लहुलूहान जिस्म , कमजोर और गमगीन , फिर भी उस रसूल की रहमत पुकार उठी , नहीं ऐसा न करे , मुझे पूरी उम्मीद है इनकी आने वाले नस्ल ज़रूर ईमान
लाएंगी। यह वह वक़्त है जब इस्लाम कमजोर था।
फिर जंग बद्र हुई
, और फतह मक्काः, ३ लोग जो बारए रास्त मुजरिम थे माफ़ी का एलान हुआ। मेरे रसूल की रहमत आज फिर पुकार उठी , आज मैंने सबको माफ़ किया।
मक्का के सरदार अबू
सुफियान शिकस्ता खड़े है , अल्लाह के रसूल पूछते
है , बताओ तुम मुझसे क्या
चाहते हो, मुझसे क्या उम्मीद
रखते हो, अबू सुफियान जवाब देते , तुम आला ज़र्फ़ भाई हो , एक आला ज़र्फ़ भाई के बेटे हो , हम आपके भलाई उम्मीद रखते है।
रहमतिल्लील आलमीन
ऐलान करते , जो अबू सुफियान के
घर में दाखिल हुआ उसे माफ़ किया , जो खाने काबा में
दाखिल हुआ उसे माफ़ किया , जिसने अपने दरवाजे
बंद किये उसे माफ़ किया, और आम माफ़ी का ऐलान हुआ।
एक अजीब मंज़र था एक
फ़ातेहाना फ़ौज , सर को झुकाये हुये
शहर में दाखिल होती है।
खाने काबा पे अज़ान
देने का वक़्त हुआ तो एक गुलाम , काला , हब्शी बिलाल ( रजि अल्लाह ) को मेरे और आपके प्यारे
रसूल सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम हुक्म देते, और मेरे आका के कंधे पर पैर रख कर वो ऊपर चढ़ाते है और अजान दी
जाती। यह वही मक्काः है , जहा आका अबू जहल बिलाल
(रजि अल्लाह ) तपती हुए रेत पर लिटा कर वजनदार पत्थर रखता था , और जबान से अहद अहद निकालता था। आज वह फातेह था
, यह इन्किलाब है।
यह मेयार इ मसावात
है , यह मेयार बराबरी है।
और यह तारीख अस्लाफ
ने जारी रखी, जेरुसलम मस्जिद अक़्सा फ़तेह हुई , और वक़्त के खलीफा , अमीरुल मोमिनीन को पैगाम लिखा जाता और जाबी (कुंजी
/ keys ) लेने के लिए बुलाया
जाता है।
एक वक़्त का सबसे बड़ी
सल्तनत का बादशाह और उसका गुलाम एक ऊंट पर सफर करते है , और बारी बारी सवारी करते है , जिस वक़्त शहर नजदीक होता है तो बारी गुलाम की होती
है , आका ऊंट की रस्सी
पकड़े हुआ होता है। गुलाम कहता आप ऊंट पर सवार
हो जाये अमीरुल मोमिनीन , मगर वह इस से इंकार
कर देते और यह दो लोगो काफिला शहर पहुँचता है , एक अजीबो गरीब मंजर है , जो तारीख ने पहले कभी नहीं देखा है।
आधी दिनिया का बादशाह
, अमीरुल मोमिनीन , खलीफा इ वक़्त , शहर में अमन का ऐलान करते हुआ शहर में दाखिल होते
है , मुसलमानो की फ़ौज अपने
कमांडर अमीन अल उम्मत अबू ओबैदा बिन ज़र्राह की क़यादत में शहर पे अमन का परचम लहराती
है।
मस्जिद इ अक़्सा में
२ रकत नमाज पढ़ी गयी।
मस्जिद इ अक़्सा और
शहर सलाहुद्दीन अयूबी रहमतुल्लाह अलैहि ने वापस फतह किया और हर शहरी को अमन दिया।
मेहमत फ़तेह ने इस्ताम्बुल
/ कन्सिसटिनोपाल फ़तेह किया, हर शहरी को दिन की
आज़ादी दी एंड अमन का ऐलान किया।
हमारी तारीख एक इंसाफ,
बराबरी और मसावात की तारीख
है।
दूसरा पॉइंट जो मै
कहना चाह रहा हु वह वो अच्छी आम है , बुराई और हराम है।
जिन पे हद नाफ़िज़ होती
है वह जुर्म मुतय्यन है, जीना , क़त्ल , मुर्तद , गुस्ताख़ इ रसूल,
तो हमारे यहाँ बुराई व्याख्या
कर दी गए है।
ऐ ईमानदारों जो कुछ
हम ने तुम्हें दिया है उस में से सुथरी चीज़ें (षौक़ से) खाओं और अगर ख़ुदा ही की इबादत
करते हो तो उसी का शुक्र करो (२: 172)
उसने तो तुम पर बस
मुर्दा जानवर और खू़न और सूअर का गोश्त और वह जिस पर ज़िबह के वक़्त ख़ुदा के सिवा और
किसी का नाम लिया गया हो हराम किया है बस जो शख्स मजबूर हो और सरकशी करने वाला और ज़्यादती
करने वाला न हो (और उनमे से कोई चीज़ खा ले) तो उसपर गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा
बख़्शने वाला मेहरबान है (२:173)
(लोगों) मरा हुआ जानवर
और ख़ून और सुअर का गोश्त और जिस (जानवर) पर (जि़बाह) के वक़्त ख़ुदा के सिवा किसी
दूसरे का नाम लिया जाए और गर्दन मरोड़ा हुआ और चोट खाकर मरा हुआ और जो कुएं (वगै़रह)
में गिरकर मर जाए और जो सींग से मार डाला गया हो और जिसको दरिन्दे ने फाड़ खाया हो
मगर जिसे तुमने मरने के क़ब्ल जि़बाह कर लो और (जो जानवर) बुतों (के थान) पर चढ़ा कर
ज़िबाह किया जाए और जिसे तुम (पाँसे) के तीरों से बाहम हिस्सा बाटो(ग़रज़ यह सब चीज़ें)
तुम पर हराम की गयी हैं ये गुनाह की बात है (मुसलमानों) अब तो कुफ़्फ़ार तुम्हारे दीन
से (फिर जाने से) मायूस हो गए तो तुम उनसे तो डरो ही नहीं बल्कि सिर्फ मुझी से डरो
आज मैंने तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया और तुमपर अपनी नेअमत पूरी कर दी और तुम्हारे
(इस) दीने इस्लाम को पसन्द किया बस जो शख़्स भूख़ में मजबूर हो जाए और गुनाह की तरफ़
माएल भी न हो (और कोई चीज़ खा ले) तो ख़ुदा बेशक बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (५:3)
अल्लाह ने हलाल और
हराम को तय कर दिया है , अच्छी आम है और बुराई
मुआइन है।
ऐ ईमानदारों शराब,
जुआ और बुत और पाँसे तो बस
नापाक (बुरे) शैतानी काम हैं तो तुम लोग इससे बचे रहो ताकि तुम फलाह पाओ (५:90)
शैतान की तो बस यही
तमन्ना है कि शराब और जुए की बदौलत तुममें बाहम अदावत व दुश्मनी डलवा दे और ख़ुदा की
याद और नमाज़ से बाज़ रखे तो क्या तुम उससे बाज़ आने वाले हो (५:91)
यह काम जो हराम है
और इन्हे रोकना हमारी जिम्मेदारी है।
और तुमसे एक गिरोह
ऐसे (लोगों का भी) तो होना चाहिये जो (लोगों को) नेकी की तरफ़ बुलाए अच्छे काम का हुक्म
दे और बुरे कामों से रोके और ऐसे ही लोग (आख़ेरत में) अपनी दिली मुरादें पायेंगे (३:104)
तुम क्या अच्छे गिरोह
हो कि (लोगों की) हिदायत के वास्ते पैदा किये गए हो तुम (लोगों को) अच्छे काम का हुक्म
करते हो और बुरे कामों से रोकते हो और ख़ुदा पर ईमान रखते हो और अगर एहले किताब भी
(इसी तरह) ईमान लाते तो उनके हक़ में बहुत अच्छा होता उनमें से कुछ ही तो इमानदार हैं
और अक्सर बदकार (३:110)
यह मुस्लिम उम्मत
का बुनियादी काम है। अच्छाई / भलाई का हुक्म
देना और बुराई से रोकना। जो चीज़े रोकने की
है , मैंने ऊपर बताई है। इस वक़्त सबसे अहम् काम है अच्छाई को आम करना।
क़ुरान में अल्लाह
अज्जो व जल्लो फरमाता है ,
इसमें तो शक ही नहीं
कि ख़ुदा ने मोमिनीन से उनकी जानें और उनके माल इस बात पर ख़रीद लिए हैं कि (उनकी क़ीमत)
उनके लिए बेहष्त है जन्नत ९:१११
भाइयो हम सख्त हालात
से गुजर रहे है , इस दौर में अपने हिसाब से अपने भाई की मदद करे ,
कोई भी भूखा नहीं सोये ,
कोई बच्चा खाने की लिए नहीं
रोये इसका पूरा ख्याल रखे।
ज्यादा से ज्यादा
सदक़ह करे, अल्लाह का वादा है , वह दुनिया और आख़िरत बेहतर अजर ने नवाजेगा, अल्लाह के खजाने में कोई कमी नहीं है , आप दिल खोल के खर्च करे।
क़ुरान और अपने एहद
का पूरा करने वाला ख़़ुदा से बढ़कर कौन है तुम तो अपनी ख़रीद फरोख़्त से जो तुमने ख़़ुदा
से की है खुषियाँ मनाओ यही तो बड़ी कामयाबी है (९:111)
इब्न अबी शायबा ने
बताया: अल्लाह के रसूल, सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम ने कहा:
हर नेक काम परोपकार
( सदक़ह ) होता है।
एक अन्य कथन में,
पैगंबर ने कहा:
हर नेक काम परोपकार
( सदक़ह ) होता है। वास्तव में, मुस्कुराते हुए चेहरे
के साथ अपने भाई से मिलना।
दान, इस व्यापक अर्थ में, केवल पैसा नहीं दे रहा है बल्कि यह जीवन का एक तरीका
है। मुसलमानों की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे अपने धन, समय, और अल्लाह के आशीर्वाद के लिए कृतज्ञता के कृत्यों के रूप में
हर दिन दान करें। अल्लाह ने हमें स्वास्थ्य, धन, समय और ऊर्जा दी है इसलिए हमें उसकी सेवा में दूसरों को वापस
देने की आवश्यकता है।
अबू हुरैरा ने बताया:
अल्लाह का रसूल, शांति और आशीर्वाद
उस पर हो, कहा:
दान हर दिन के लिए
लोगों के हर संयुक्त पर होता है, जिस दिन सूरज उगता
है। सिर्फ दो लोगों के बीच होना ही दान है। अपने जानवर के साथ एक आदमी की मदद करना
और उस पर अपना सामान उठाना दान है। एक प्रकार का शब्द दान है। मस्जिद की ओर जाने वाला
हर कदम परोपकार है, और सड़क से हानिकारक
चीजों को हटाना दान है।
अबू हुरैरा ने बताया:
अल्लाह का रसूल, सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम
फरमाते है ,
सबसे अच्छा दान वह
है जो आप खुमुखतर होने पर देते हैं, और आपको अपने आश्रितों ( घरवालों )पर खर्च करने से शुरू करना
चाहिए।
जब कोई मुस्लिम अपने
परिवार पर अच्छा खर्च करता है तो उसे उसके लिए दान माना जाता है।
सदक़ह दान लेने वाल
देने वाले पे अहसान करता है। क्योंकि सदक़ह
से फायदा सिर्फ देने वालेको होता है।
जो लोग इस वक़्त मदत
कर रहे है , वह यह बात अच्छे से
अपने जहाँ में बिठा ले , लेने वाला आप पे अहसान
कर रहा , इस सदक़ह का फायदा
आपको दुनिया और आख़िरत में होंगे। इस तरह सोच
रखने से तकब्बुर नहीं आता / गरूर नहीं आता।
अल्लाह आपके हर सदक़ह
को कबूल करे।
यह आपको आपदा से बचाता
है
पैगंबर, उस पर शांति हो, ने कहा: "देरी के बिना दान दें, क्योंकि यह आपदा के रास्ते में खड़ा है।"
(तिर्मिज़ी)
यह एक अच्छा काम है
जो कभी खत्म नहीं होता है
मुहम्मद सल्ललाहो
अलैहि वस्सलाम ने कहा: "जब एक आदमी मर
जाता है, तो तीन कामों को छोड़कर
उसके कर्म समाप्त हो जाते हैं: सदाक़ाह जरीयाह (निर्जीव दान); एक ज्ञान जो लाभदायक है, या एक पुण्य वंशज है जो उसके लिए (मृतक के लिए)
प्रार्थना करता है। ” (मुस्लिम)
आख़िरत न्याय के दिन
दान एक शेड होगा
पैगंबर, सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम " फिर ज़िंदा कर के उठाये जाएंगे के दिन पर ईमान वालो की छाया उसकी दानशीलता होगी।" (तिर्मिज़ी)
6) यह आपको नरक से बचाता
है
पैगंबर मुहम्मद ने
शांति के साथ कहा, "दान के रूप में खजूर का एक टुकड़ा देकर भी खुद को नरक-आग से बचाएं।"
(अल-बुखारी और मुस्लिम)
7) यह बढ़ाता है कि अल्लाह
सुभानवताल जो दिया है।
"अल्लाह, अज्ज व जल्ल कहते हैं, आदम के हे बेटे, खर्च करो, और मैं तुम पर खर्च करूँगा ।" - पैगंबर मुहम्मद,
सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम
मुसलमानो का किरदार
मुसलमानो की सबसे बड़ी अमानत है।
हमेशा बातिल ने इसी
चीज़ पर हमला किया है। यस वह चीज़ है,
जो मुस्लमान और बातिल में
फर्क कराती है। हमारी ज़िन्दगी का हर शोबा ,
हर अमल हर कदम एक नेकी है।
जब हम ऐसे अल्लाह के लिए करेंगे तो इसका अजर अल्लाह अज्ज व जल्ल देंगे।
और बेशक ( अल्लाह रसूल ) एख़लाक़ बड़े आला दर्जे के हैं (६८:4)
(मुसलमानों) तुम्हारे
वास्ते तो खु़द रसूल अल्लाह का एक अच्छा नमूना था (मगर हाँ यह) उस शख़्स के वास्ते
है जो खु़दा और रोजे़ आखे़रत की उम्मीद रखता हो और खु़दा की याद बाकसरत करता हो (३३:21)
अल्लाह अल्लाह की
गवाही है, अल्लाह के रसूल और
हमारे प्यारे नबी सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम हमेशा के लिए सबसे बेहतरीन किरदार और नमूना
है और हमें उनको फॉलो करना कामयाबी के लिए।
बातिल हमेशा से जानता
है, हमारा इन्किलाब हमारे ज़िन्दगी
से शुरू होता है। हमारे अख़लाक़ हमारे किरदार
हमारा सब से बड़ा असासा है। हमेशा से सबसे पहले
अटैक किया गया।
क़ुरान हमें बताता
है छूट से कैसा जाये।
ऐ ईमानदारों अगर कोई
बदकिरदार तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो ख़ूब तहक़ीक़ कर लिया करो (ऐसा न हो) कि
तुम किसी क़ौम को नादानी से नुक़सान पहुँचाओ फिर अपने किए पर नादिम हो (४९ :६)
आज सोशल मीडिया के
जमाने में इसकी जरूरत ज्यादा हो गयी है। हर
न्यूज़ को चेक करो, फिर उसे आगे बढ़ाये।
बल्कि ये तुम्हारे
हक़ में बेहतर है इनमें से जिस शख़्स ने जितना गुनाह समेटा वह उस (की सज़ा) को खुद
भुगतेगा और उनमें से जिस शख़्स ने तोहमत का बड़ा हिस्सा लिया उसके लिए बड़ी (सख़्त)
सज़ा होगी (२४ :11)
और जब तुम लोगो ने
उसको सुना था तो उसी वक़्त इमानदार मर्दों और इमानदार औरतों ने अपने लोगों पर भलाई
का गुमान क्यो न किया और ये क्यों न बोल उठे कि ये तो खुला हुआ बोहतान है (२४:12)
यह हमारे हमेशा मयार
होना चाहिए।
इंक़लाब की पहली मंज़िल
है ज़िन्दगी में इन्किलाब।
हमारी इन्किलाब आना ज़रूरी है। अगर ज़िन्दगी में इन्किलाब आएंगे तो जामी पे इन्किलाब
आएंगे।
इमां वाले / मुसलमान
कैसे होते है , अल्लाह ने अपनी किताब कुरान मजीद में कुछ इस तरह ,
बयां किया है , पड़ते पड़ते यह आयात मेरे आँखों से गुजारी सोचा आपके
साथ शेयर करू , (ये लोग) तौबा करने
वाले इबादत गुज़ार (ख़़ुदा की) हम्दो सना (तारीफ़) करने वाले (उस की राह में) सफर करने
वाले रूकूउ करने वाले सजदा करने वाले नेक काम का हुक्म करने वाले और बुरे काम से रोकने
वाले और ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुयी) हदो को निगाह रखने वाले हैं और (ऐ रसूल) उन मोमिनीन
को (बेहिष्त की) ख़ुषख़बरी दे दो (112) सूरह तौबा - यह मुस्लमान
का मयार है , हमें अपना एहतेसब
करना चाहिए , अपना जायजा लेना चाहिए
हम कहा खड़े है। रमदान का महीना है ,
अल्लाह ने हमें खाली वक़्त
दिया है , अल्लाह की किताब का
मुताला करे , समझे ज़िन्दगी में
लाये। ऐसी में दुनिया और आख़िरत की कामयाबी है।
इब्न अब्बास रजी अल्लाह
अन्हो से रिवायत है , अल्लाह के रसूल सल्ललाहो
अलैहि वस्सलाम ने फ़रमाया पांच चीजों को पांच चीजों से पहले गनीमत जानो , जवानी को बुढ़ापे से पहले , सेहत को बीमारी से पहले, मालदारी को फकीरी से पहले , खली वक़्त को मशगुलियत से पहले , ज़िन्दगी को मौत से पहले।
किसी की नज़र न लगे
आप को , अल्लाह से दुआ कर
दू।
माशा अल्लाह सुभान
अल्लाह
जो लोग अपनी ज़िन्दगी
में इन्किलाब नहीं ला सकते वो जमीन कभी कामयाब इन्किलाब नहीं ला सकते।
मक्काः की १३ साल
की तारीख यह जिन्दगी में इन्किलाब की तारीख है , इतिहास है।
रमदान आ रहा है ,
हम अपने ज़िन्दगी में इन्किलाब
लाये। अल्लाह से हमारा हक़ीक़ी ताल्लुक मजबूत करे।
मक्काः के १३ साल
सुमय्या (रजि अल्लाह ) की शाहदत की तारीख है।
बिलाल रजि अल्लाह
के तपते हुआ रेगिस्तान से निकले हुआ अहद अहद के पुकार की दास्ताँ है।
शैब इ अभी तालिब के
फाकाकशी की तारीख है।
हिजरत इ हब्शा की
तारीख है। यह अहद पैमान की तारीख है। यह एक ताक़तवर जालिम के आगे एक मजबूत ईमान की तारीख
है।
रमदान आ रहा है ,
अपनी ज़िन्दगी में इन्किलाब
लाये।
हलाल और हराम का फ़र्क़
समझे और हर हराम से , हर तरह के करप्शन
को अपनी जिंदगी से निकल बहार करे।
जो लोग जिंदगी में
इन्किलाब आएंगे वही लोग जमीन पे इन्किलाब ला सकते है।
आज भी हो जो इब्राहिम
सा ईमान पैदा
आग कर सकती है अंदाज़
इ गुलिस्तां पैदा
रमदान में ज़िन्दगी
में इन्किलाब कैसे लाये।
ताल्लुक़ बिल्लाह को
मज़बूत करे
फर्द (फर्ज ) सबसे
पहले है, उसे पूरा करे ,
सलात (नमाज) वक़्त पर पढ़े,
पूरी पढ़े। दिल लगा के पढ़े , यह पहली कड़ी है।
ज़कात दे ,
पूरी दे , वक़्त पर दे , सही लोगो तक पहुचाये।
सबसे पहले हक़दार यतीम
बच्चे , गरीब, मिस्कीन , मौतज , जो आपके रिश्तेदार हो , जो आपका पडोसी हो, इन्हे पहले ख्याल रखे।
अगर हम हमारी ज़िन्दगी
में तब्दीली लाते है। अल्लाह बताये हुआ रस्ते पे चलते है, अल्लाह के नबी सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम के तरीके
को अपनाते हुआ आगे बङोंगे तो बहोत अनक़रीब इन्किलाब आयेंगा।
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