महिला सशक्तीकरण हिस्सा १
( सचाई और तक़वा, हम्बल , पोलाइट , )
मैं आपको आज इतिहास के पन्नो से बताना चाहूंगा सचाई क्या होती है , कैसी बोली जाती है एंड सशक्तिकरण क्या होता है। हुक्मरां हमारा नुमाइंदा है , जो हमारा मफाद के लिए सचाई के साथ काम करे.
उमर इब्न खत्ताब रजि अल्लाह उन्हे वक़्त के अमीरुल मोमिनीन और खलिफा थे, जिनकी हुकूमत उस वक़्त की आधी दुनिया पे थी।
जुमे के रोज वह खुतबा दे रहे थे , खुतबे का मौजू था , मेहर ( वह हुकूक/पैसा/चीज़े , एक मर्द अपनी होनी वाली शरीक इ हयात को देता है ). औरते मेहर बहोत ज्यादा तलब करने लगी थी जिस की वजह से निकाह में मुश्किल आ रही थी। अमीरुल मोमिनीन इस को किसी तरह हद /limit करना चाह रहे थे। और खुतबे में उन्होंने फरमान जारी किया। उस वक़्त एक खातून उठी और कहा अमीरुल मोनिनिन ( रिवायत में आता है की उस खातून राजी अल्लाह ने कहा ए उमर ) जिस चीज को अल्लाह और उसके रसूल सल्ललाहो अलैहि वस्सलाम में मुतय्यन (Limit ) /हद नहीं की है , उसे करने वाले तुम कौन हो। यह हमारा हक़ है , हम चाहे माफ़ करे , चाहे जितने ले , तुम ऐसे मुतय्यन (Limit ) नहीं कर सकते। और वक़्त के अमीरुल मोमिनीन / खलीफा / बादशाह ने अपना फरमान वापस लिया।
दूसरी मिसाल जुमा का खुतबा देने के लिए अमीरुल मोमिनीन उम्र इब्न खत्ताब राजी अल्लाह उन्हों मेमबर पर टरशरीफ लाये थे की एक खातून ने सवाल किया ( रिवायत यह भी एक शख्स था) इसके पहले हम आपकी बात सुने आप मेरे सवाल का जवाब दो। और उस खातून ने सवाल किया , अमीरुल मोमिनीन आपका कुरता सब लोगो के कुर्ते से लम्बाई में ज्यादा कैसा है। जो कपड़ा बैतूल माल ( ट्रेज़री) से मिला था वह काफी नहीं था। उमर राजी अल्लाह उन्हों बेटे अब्दुल्लाह बिन उम्र रजि अल्लाह उन्हों के तरफ इशारा किया की वह जवाब दे। अब्दुल्लाह बिन उमर खड़े हो कर कहा , मैंने मेरा हिस्से का कपड़ा अपने वालिद को दिया , क्योंकि जो कपड़ा मिला वह काफी नहीं था और हम दोनों में से किसी का कुरता नहीं बन रहा था। वह यह कहते हुए बैठ गई की सच्चे हो , अब हम तुम्हारी बात सुनेंगे।
मेरी अज़ीज़ बहनो और भाइयो , यह हमारा मयार ये सचाई रहा है , यह हमारे हुक्मरान का मयार है। और यह हमारा तरीक़ा का इ ऐतेसाब ( सवाल करना,
ऑडिट , पूछआना ) है।
जो लोग आज सशक्तिकरण की बात करते है उन्हें सबक लेने की ज़रुरत है। मैं यह समझता हु,
कमी हमारी है हमने पैगाम न पहुंचाया न ही हमारी ज़िन्दगी में लाया। हम उम्मती सिर्फ मिलाद के लिए नहीं है , हम उम्मती इस दावत को,
इस हक़ की आवाज को हर शख्स तक पहुंचने के किये है , एहि हमारी जिम्मेदारी है।
इस कड़ी तीसरा वाक़िअ है ,एक रोज उमर बिन खत्ताब राजी अल्लाह रास्ते से गुजर रहे थे तो एक उम्र रशीदा खातून (बुढ़िया) ने रोका और कह ऐ उमर एक वक़्त था लोग तुम्हे उमर कहते थे बकरिया चराया करते थे, अब तुम अमीरुल मोमिनीन बन गए हो , अपने रैय्यत (Population ) के मामले ने अल्लाह से डरते रहना , और तवाजो से पेश आना (Balance
), इंसाफ करना , तो जो लोग उमर राजी अल्लाह उन्हे के साथ थे कहने लगे ऐ बुढ़िया तू रोक कर अमीरुल मोमिनीन के साथ जबान दराजी कर रही हो , तो वक़्त खलीफा , अमीरुल मोमिनीन बोल उठे , तुम जानते खातून कौन है, इनकी बात सातवे आसमान पे सुनी गई , उमर को तो पहले सुननी चाहिए। यह खातून थी जिनके सवाल पे सौराह मुजादला नाज़िल होइ थी।
यह वह किस्से है जो सशक्तिकरण , विमेंस empowerment की १४०० साल पुराणी मिसाल है।